उन्होंने कहा
"हमें सबसे पहले मुल्क की ख़राब आर्थिक सेहत को ठीक करना
था. बिना अमन के इसे हम ठीक कर ही नहीं सकते. हमने पाकिस्तान के भीतर भी
ऐसा ही कि
या. हमारा एजेंडा ही था कि पहले अमन लाना है. अफ़ग़ानिस्तान मेरे
एजेंडे में था कि वहां शांति समझौते कराने हैं."
"राष्ट्रपति अशरफ़
ग़नी से हमारे सं
बंध अच्छे हैं. उनसे मैंने अभी ही बात की है. अफ़ग़ानिस्तान से हम संबंध जितने बेहतर कर सकते थे किए हैं. बदक़िस्मती से
शांति समझौते को लेकर जो संवाद चल रहा था उसमें अभी
रुकावट आ गई है. यह दोनों मुल्कों के लिए बदक़िस्मती है. मैं फिर से इसमें पूरा ज़ोर लगाऊंगा. पूरी कोशिश करेंगे कि अमन क़ायम हो. इस अमन से हमें सबसे ज़्यादा फ़ायदा
होगा."
'क़ानून से कभी प्यार मत करो क्योंकि क़ानून वो जलनखोर रखैल है जो हमेशा हताश करती है.'
'सेक्शन 375' फ़िल्म में जब बचाव
पक्ष का वक़ील तरुण सलूजा (अक्षय ख़न्ना) ये कहता है तो इसके दो अर्थ समझ में आते हैं.
पहला-
क़ानून की समझ समाज की समझ के साथ बढ़ती है. दूसरा- रखैल बदल दी जाती है
इसलिए उससे प्यार मत करो. लेकिन अगर लड़ाई क़ानून बनाम इंसाफ़ की हो जाए,
तब आप किस तरफ़ होंगे?
उस क़ानून की तरफ़ जो ये कहता है कि एक लड़की की इच्छा और सहमति सबसे ज़्यादा ज़रूरी है, एक बार के लिए नहीं बल्कि हर बार के लिए ज़रूरी है. क्या आप उस न्याय की तरफ़ होंगे, जहां सिर्फ़ सच
मायने रखता है. इस सवाल का कई लोग शायद ये जवाब दें कि वो ऐसे फ़ैसले का
समर्थन करेंगे, जहां क़ानून की मदद से न्याय मिला हो.
रेप के चंद घं
टों बाद ही पीड़िता से ये कहना ज़ाहिर करता है कि हमारा प्रशासन अब भी पीड़िता के ट्रॉमा को पूरी तरह समझ नहीं पाया है.
चंद
घंटे पहले बलात्कार झेल चुकी औरत से
सारी घटना 'टू द पॉइंट' बतलाने की उम्मीद रखना या न बतला पाने पर झूठा समझ लेना समाज में औरतों को लेकर आम
राय का पर्दाफाश करता है.
पुलित्ज़र प्राइज़ से सम्मानित लेख पर आधारित नेटफ्लिक्स की सिरीज़ 'अनबिलिवेबल' में मेरी एडलर की कहानी इसी
नज़रिए को बड़ी ख़ूबसूरती और दर्दनाक तरीक़े से दिखाती है.
कहानी के
छिपे ट्विस्ट एंड टर्न्स को ज़्यादा बताए बगैर अगर स्क्रिप्ट की बात की जाए
तो मनीष गुप्ता की स्क्रिप्ट बहुत हद तक बांधे रखती है.
ऐसे तो प्रॉसिक्युटर को ढीला और कन्फ्यूज्ड दिखाना निराशाजनक और छला हुआ लगता है
लेकिन डिफेंस वकील की इन्वेस्टिगेशन का तरीक़ा बेहतर लगता है.
निदेशक
अजय बहल बलात्कारी साबित हो जाने तक अभियुक्त के लिए कम्प्लीट जूडिशल
प्रोसेस से बिना अपमानित हुए गुजरने के हक़ और सोशल
मीडिया के हाफ-इंफॉर्मड ट्रायल को सफलतापूर्वक सामने लाने में सफल रहे हैं.
कम सुनने और
ज्यादा राय बनाने के दौर में फ़िल्म में उठाए छोटे-छोटे सवाल हमें सोचने पर
मजबूर करते हैं कि सिक्के के दोनों पहलू को बिना सुने फ़ैसले पर पहुँच
जाना कितना घातक हो सकता है.
मगर हक़ीक़त
तो ये है कि फ़ैसले के रास्ते में
सिस्टम की ऐसी धूल भरी फाइलें पड़ी हैं, जिन्हें पार करने में ही सालों-साल लग जाते हैं. फ़िल्म से
फ़िल्म विक्टिम के बचाव में प्रॉसिक्युटर को बेतुकी और अधूरी लाइनें
देकर ये बताने से कतराती है कि भारत में कम कनविक्शन रेट के कितने सारे
कारण हैं.
इसी की वजह से कई केस कोर्ट पहुंच
ने से पहले दम तोड़ देते हैं. ऐसे केसों को फ़र्ज़ी आरोपों की श्रेणी में डालने से पहले हमें
उन्नाव रेप पीड़िता को याद करना पड़ेगा.
हमें याद करना पड़ेगा
कि अलवर में कैसे सामूहिक बलात्कार के बाद वीडियो वायरल करने की धमकी दी गई थी. कन्विक्शन रेट से पहले हमें ये पूछना होगा कि मानसिक उत्पीड़न और छेड़छाड़ झेलने वाली दिल्ली की एक लड़की को पुलिस की लापरवाही से फाँसी क्यों लगानी पड़ी थी.
एक
कोर्ट रूम ड्रामा पेश कर रही फ़़िल्म अगर दोनों पक्षों में से एक के तर्क
में कंजूसी करती हुई दिखती है तो कहा
नी किस तरफ़ टिल्टेड है, इस पर राय बनाना बहुत मुश्किल नहीं होता है.
मगर फ़िल्म दबे क़दमों से ही सही,
सिस्टम में चले आ रहे कुछ बेजा हरकतों पर हमारा ध्यान ले जाती है. इसमें
सबसे पहले आता है किसी भी रेप पीड़िता के साथ की गई पुलिस का व्यवहार और
मेडिकल चेकअप. पीड़िता के साथ दिखाई जाने वाली विशेष
संवेदनशीलता की ज़रूरत पर बार-बार बात की गई है.
क्शन 375 भी ऐसी
ही धूल पर सिनेमाई झाड़ू मारने की कोशिश करती दिखती है.
औसतन हर 14वें मिनट में होते
एक रेप वाले देश में ये धारा 375 बलात्कार की परिभाषा बताती है. लेकिन
सज़ा जानने के लिए क़ानून का पन्ना
पलटकर 376 तक आना पड़ता है.
यहां
तक पहुंचने की लड़ाई लड़ने वाली पीड़िताओं को झेलने होते हैं भोगे हुए सच
का दर्द और उसे साबित करने
की लड़ाई. वो भी इस दौर में जहां आए दिन ऐसी पीड़िताओं को कुचलने के लिए सामने से तेज़ रफ़्तार ट्रक दौड़े चले आ रहे
होते हैं.
सेक्शन 375 फ़िल्म के केंद्र में एक सवा
ल रहता है- कानून बड़ा या न्याय? इस सवाल का साथ देती है- बलात्कार के दृश्य की ओर संकेत
करती हुई कहानी.
फ़िल्म में डायरेक्टर का किरदार अ
दा कर रहे रोहित खुराना (राहुल भट्ट) पर अपनी कॉस्ट्यूम डिजाइनर अंजली दांगले ( मीरा
चोपड़ा) का बलात्कार करने का आरोप है. सेशन कोर्ट फ़ैसला सुनाता है- दोषी
क़रार.
केस हाई कोर्ट पहुंचता है. बचाव पक्ष के वकी
ल से हीरल गांधी (ऋचा चड्ढा) जिरह करने आती हैं,
इमरान ख़ान ने इस मौक़े पर कहा कि "चौबीसों घंटे शुरू की गई आवाजाही से पाकिस्तान के व्यापार को फ़ायदा पहुंचेगा."
जब
इमरान से पूछा गया कि पाकिस्तान से
कितना व्यापार हो रहा है तो उन्होंने कहा, "जब से पाकिस्तान और अफ़ग़ानिस्तान के बीच तोरखन सीमा चौबीसों घंटे
खोल दी गई है तब से ट्रेड में 50 फ़ीसदी इजाफ़ा हुआ है. शंघाई कोऑपरेशन
ऑर्गेनाइजेशन (एसईओ) की बैठक में जब मैं सेंट्रल एशिया रिपब्लिक के सभी
प्रेजिडेंट से मिला तो लोगों ने मुझसे कहा
कि वो सब इंतजार कर रहे हैं कि ग्वादर का रास्ता खुले ताकि उनका व्यापार फिर से शुरू हो."