Monday, September 17, 2018

वुसअत का ब्लॉग: अमरीका को भारत-अफ़ग़ान व्यापार की इतनी चिंता क्यों

पाकिस्तान के विदेश मंत्री शाह महमूद क़ुरैशी ने क़ाबुल स्थित अमरीकी राजदूत जॉन बास की इस सूचना को ग़लत बताया है कि पाकिस्तान भारत और अफ़ग़ानिस्तान के दरम्यान रास्ता देने पर ग़ौर कर रहा है.
शाह महमूद क़ुरैशी मंत्री बनने के बाद दो दिन पहले ही क़ाबुल की पहली यात्रा से लौटे हैं.
लगता है कि न तो क़ाबुल में बने अमरीकी राजदूत की ख़बर मुकम्मल ग़लत है और न ही पाकिस्तान के विदेश मंत्री की तरफ़ से इसे झुठलाना आश्चर्यजनक है.
अगर वाघा-अटारी से तुर्ख़म तक का रास्ता भारत-अफ़ग़ान व्यापार के लिए खुल जाए, तो इसका लाभ सभी को होगा.
आज अगर भारतीय पंजाब के किसान को एक बोरी अनाज अफ़ग़ानिस्तान भेजना हो तो ये बोरी पहले तो जालंधर से सूरत या मुंबई जाएगी. वहां से जहाज़ में लद के ईरानी बंदरगाह चाबहार पहुंचेगी. और चाबहार से अफ़ग़ानिस्तान के पहले शहर ज़रिंज तक सड़क के रास्ते जाएगी, और फिर ज़रिंज से क़ाबुल तक.
इस तरह जालंधर से क़ाबुल तक अनाज की ये बोरी 4,750 किलोमीटर नाप के कम से कम आठ दिन में पहुंचेगी.
अगर यही बोरी जालंधर से वाघा-अटारी के ज़रिए पाकिस्तान से होती हुई क़ाबुल जाए तो उसे ज़्यादा ये ज़्यादा 768 किलोमीटर का फ़ासला तय करने में दो दिन लगेंगे.
सोचिए एकदम चार हज़ार किलोमीटर का रास्ता कम होने से किसको कितना कितना फ़ायदा होगा.छ आंकड़ों के अनुसार पाकिस्तान को भारत-अफ़ग़ान ट्रांज़िट ट्रेड से चुंगी, किराए और रोड टैक्स वगैरह मिला कर कम से कम डेढ़ से दो बिलियन डॉलर सालाना की कमाई होगी.
मगर अमरीका इस बारे में आख़िर इतना उतावला क्यों हो रहा है कि पाकिस्तान और भारत जल्द से जल्द वाघा-तोर्ख़म रास्ता खोलने पर राज़ी हो जाएं.
कारण शायद ये है कि अमरीका नवंबर के महीने से ईरान की मुकम्मल आर्थिक नाकाबंदी करना चाहता है. ये घेराबंदी तब तक कामयाब नहीं हो सकती जब तक ईरान से भारत के आर्थिक संबंधों में नुक़सान की किसी हद से भरपाई का (इमकान) नज़र ना आए.
अटारी-तोरख़म रास्ता खुल जाए तो अमरीका के ख़्याल में भारत चाबहार प्रोजेक्ट में निवेश करना फ़िलहाल रोक ले और ईरान की बजाय सऊदी और ईराक़ी तेल लेने पर राज़ी हो जाए.
मगर पाकिस्तान शायद रास्ता खोलने पर तब राज़ी हो जब अमरीका अफ़ग़ान मसले में पाकिस्तान की गरदन पर हाथ ढीला करते हुए उसकी कुछ ना कुछ इमदाद बहाल करे.
पाकिस्तान को इस वक्त अपनी अर्थव्यवस्था संभालने के लिए कम से कम नौ से बारह बिलियन डॉलर का फौरन ज़रूरत है.
पाकिस्तान की कोशिश है कि चीन जैसे दोस्त उसकी मदद को आएं और वो आईएमएफ़ (विश्व मुद्रा कोष) का दरवाज़ा खटखटाने से बच जाए क्योंकि इस दरवाज़े के पीछे अमरीका कुर्सी डाले बैठा है.
एक बार तय हो जाए कि पाकिस्तान को फौरी तौर पर बारह बिलियन डॉलर कहीं से उपलब्ध हो रहे हैं के नहीं. अगर हो रहे हैं तो रास्ता नहीं खुलेगा. अगर नहीं तो रास्ता खुलने की संभावनाएं बढ़ जाएंगी.
अंतरराष्ट्रीय राजनीति में उसूल-वुसूल की अहमियत कली-फुंदनों से ज़्यादा नहीं होती.
क्योंकि सियासत की कोख से अर्थव्यवस्था नहीं बल्कि माया की कोख से सियासत जन्म लेती है.रत में आज भी रोज़ाना क़रीब 21 लड़कियां दहेज प्रताड़ना की वजह से मरती हैं. आज भी रोज़ 300 से ज़्यादा दहेज के मुक़दमे दर्ज होते हैं.
ऐसे में ये समझना भी ज़रूरी है कि कैसे सामाजिक माहौल में और किन रीति-रिवाजों के चलते हम अपनी बेटियों को जन्म दे रहे हैं और उनकी शादियां कर रहे हैं.
पैदा होने के बाद से ही लड़कियों को 'पराया धन' माना जाता है और एक बार जब उसकी शादी हो जाती है तो कहा जाता है कि लड़की अपने घर चली गई.
जहाँ वो जन्म लेती है, वो घर उसका होता ही नहीं. ऐसी मान्यता है कि जिस घर वो शादी के बाद जाती है, वही घर उसका अपना होता है.
ऐसी स्थिति में सोचिए कि शादी के बाद पति या उसके रिश्तेदारों के ख़िलाफ़ मुक़दमा दर्ज कराना यानी अपने ही घर के बाहर होना या फिर ये कहिए कि बेघर होना है.
इन सभी सामाजिक मान्यताओं और शादीशुदा लड़कियों के बड़ी संख्या में मरने के बावजूद चर्चा इस विषय पर नहीं होती कि कैसे लड़कियों के ख़िलाफ़ होने वाले दहेज संबंधी अपराधों को रोका जाये.
चर्चा इस विषय पर होती है कि कैसे दहेज से संबंधित क़ानून को और अधिक कमज़ोर किया जाये.
सर्वोच्च न्यायालय ने शनिवार को 'सोशल एक्शन फ़ोरम फ़ॉर मानवाधिकार बनाम यूनियन ऑफ़ इंडिया' मामले में 498-ए पर जो फ़ैसला सुनाया है, वो मेरे द्वारा साल 2015 में दायर की गई एक जनहित याचिका थी.
याचिका डालने की आवश्यकता इसलिए महसूस हुई क्योंकि समय-समय पर अलग-अलग उच्च न्यायालयों के द्वारा तथा सरकार के ज्ञापनों द्वारा 498-ए के मुक़दमों में विभिन्न निर्देश जारी किये गए थे.
जैसे किन परिस्थितियों में एफ़आईआर लिखी जानी चाहिए, किन कारणों के चलते गिरफ़्तारी होनी चाहिए, किस-किस को गिरफ़्तार किया जा सकता है.
और फिर 'अरुणेश कुमार बनाम भारत सरकार' केस पर सुप्रीम कोर्ट का फ़ैसला आता है. उसमें फिर दिशानिर्देश जारी किए जाते हैं कि एफ़आईआर कैसे दर्ज की जाए, जाँच कैसे हो, मजिस्ट्रेट मुक़दमे का संज्ञान कैसे लें, वग़ैरह-वग़ैरह.
 की याचिका में सर्वोच्च न्यायालय के सामने ये बात भी रखी गई कि कई तरह के दिशा-निर्देशों से महिलाओं के ख़िलाफ़ होने वाली हिंसा से संबंधित क़ानून कमज़ोर हो रहे हैं.
अदालत से ये प्रार्थना भी की गई कि महिलाओं के ख़िलाफ़ हो रही हिंसा के संदर्भ में एक यूनिफ़ॉर्म पॉलिसी बनाई जाये जिसके तहत ही एफ़आईआर रजिस्टर हो, गिरफ़्तारी हो और ज़मानत कैसे मिलनी चाहिए आदि.
याचिका में ये भी कहा गया कि सामान्य रूप से पुलिस भी दहेज के मामलों में जब तक कि लड़की की मौत न हो जाये, मामले को गंभीरता से नहीं लेती.
फिर जब इस तरह के फ़ैसले आ जाते हैं तो पुलिस को भी दहेज के मामलों में निष्क्रिय रहने का बहाना मिल जाता है और पुलिस कहती है कि लड़कियाँ झूठे मुक़दमे डालती हैं.
याचिका में ये भी ज़िक्र था कि 498-ए सीआरपीसी में पर्याप्त चेक एंड बैलेंस हैं जिनके द्वारा किसी भी प्रकार के दुरुपयोग को रोका जा सकता है.
लेकिन सोचने वाली बात ये है कि जब एफ़आईआर के दर्ज होने से लेकर, जाँच को लेकर, गिरफ़्तारी को लेकर क़ानून बखूबी बनाये गए हैं, फिर ऐसा क्यों होता है कि दहेज से संबंधित अपराधों को लेकर ही नये-नये दिशानिर्देश जारी किये जाते हैं?स मुक़दमे का तो मानो खंडपीठ इंतज़ार ही कर रही थी. इस पर नये प्रकार के दिशानिर्देश पैरा-19 में जारी किये गए. इनमें लिखा गया:
1. हर ज़िले में 'फ़ैमिली वेलफ़ेयर कमिटी' होनी चाहिए. सिविल सोसायटी के सदस्यों को मिलाकर ये कमेटी बनाई जाये. यही कमेटी रिपोर्ट देगी कि गिरफ़्तारी होनी चाहिए या नहीं.
2. इन मामलों की देखभाल के लिए अलग से अफ़सर तैनात करने की भी बात कही गई.
3. समझौता होने की स्थिति में ज़िला न्यायालय ही मुक़दमे को ख़त्म कर देगा.
4. ये भी कहा गया कि ज़मानत दी जाये या नहीं, ये बड़ी सावधानी से तय किया जाये.
5. रेड कॉर्नर नोटिस रुटीन में जारी नहीं किये जायें.
6. ज़िला जज सभी मामलों को मिला सकता है.
7. परिवार के सभी सदस्यों की कोर्ट में पेशी की आवश्यकता नहीं होनी चाहिए.
8. ये निर्देश गंभीर चोटों या मृत्यु की स्थिति में लागू नहीं होंगे.
राजेश शर्मा के मुक़दमे के बाद काफ़ी आवाज़ें उठीं कि कैसे सुप्रीम कोर्ट को क़ानून बनाने का अधिकार मिल जाता है.
कई आर्टिकल लिखे गये कि राजेश शर्मा के मामले में दिया गया फ़ैसला संविधान की भावना के विरुद्ध है.
फिर सुप्रीम कोर्ट के सामने न्यायधर एनजीओ के नाम से याचिका डाली जाती है कि इसमें प्रार्थना की गई कि समिति में महिलाओं की भी सहभागिता होनी चाहिए. ये याचिका भारत के चीफ़ जस्टिस के कोर्ट में लगी थी.

Wednesday, September 12, 2018

नज़रिया: क्या अमित शाह बीजेपी के सबसे ताक़तवर अध्यक्ष हैं?

भाजपा के ऐतिहासिक रूप से दो सबसे महत्वपूर्ण नेता, वाजपेयी और आडवाणी को भी शासनकाल के दौरान संघ के साथ कई बार तनाव और असहमति देखनी पड़ी थी.
लेकिन अब अगर कोई असंतोष या मतभेद हैं भी तो वे सार्वजनिक नहीं हैं. लोग अमित शाह से डरते हैं और मुखर माने जाने वाली भाजपा आज संगठित है जो अपने अध्यक्ष के कहने पर चलती है.
वाजपेयी और आडवाणी का कार्यकर्ताओं ने अलग तरीकों से सम्मान किया लेकिन उनसे किसी को डर कभी नहीं था.
भाजपा की हालिया राष्ट्रीय कार्यकारिणी ने इस बात को और पुख़्ता कर दिया कि शाह को भाजपा का सबसे शक्तिशाली अध्यक्ष माना जा सकता है. वह न केवल रणनीतिकार हैं, बल्कि वे हर राज्य में प्रचार भी करते हैं. उनकी हैसियत प्रधानमंत्री के बाद नंबर दो की है.
वैसे जिस तरह से वह सार्वजनिक रैलियां करते हैं उससे पता चलता है कि वे खुद को एक रणनीतिकार से ज़्यादा समझते हैं. वे जन नेता होने की महत्वाकांक्षा रखते हैं लेकिन उनकी ताक़त है नरेंद्र मोदी का उन पर निर्भर होना. इन दोनों लोगों की किस्मत एक दूसरे से जुड़ी हुई है. यह भी कहा जा सकता है कि कोई एक दूसरे के बिना चल नहीं पाएगा.
ऐसा पार्टी में पहली बार है कि सत्ता का केंद्र अध्यक्ष के पास है. उनको चुनौती देने वाला कोई दूसरा पावर सेंटर नहीं है. अमित शाह को इस बात का श्रेय दिया जा सकता है कि वे हर वक्त काम करते हैं और विपक्ष को संभालने की हर रणनीति जानते हैं.
गुजरात में भी उन्हीं के वक्त में ये सामने आया था कि वो एक बढ़िया चुनाव प्रबंधक हैं, जिनकी विशेषता थी भाजपा के विरोधियों के सामने छोटी पार्टियों और निर्दलीय उम्मीदवारों को खड़ा करना जिसके नतीजतन विपक्ष के वोट कट जाते थे.जरात की रणनीति को भारत के बाक़ी हिस्सों में भी सफलता के साथ लागू किया गया है और मोदी-शाह के राज में भाजपा ऐतिहासिक रूप से देश की सबसे धनी पार्टी (चुनाव आयोग को प्रस्तुत आंकड़ों के मुताबिक) के रूप में उभरी है.
सहयोगी पार्टियों को जब ज़रूरत हो तो फंड कर दिया जाता है, साथ ही कार्यकर्ता और राजनीतिक विस्तार के लिए धन की कमी नहीं पड़ती. राजनीति के इस क्रूर मॉडल को भाजपा में लाने का श्रेय शाह को दिया जाना चाहिए.
विपक्षी दलों की शिकायत रहती है कि अगर वे विरोध करते हैं तो उन्हें इन्कम टैक्स और ईडी की धमकी दी जाती है.
पर ताक़त और पैसे की भी सीमा होती है क्योंकि शाह की कर्नाटक में सरकार बनाने की योजना नाकाम हो गई. वहां भाजपा को बहुमत नहीं मिला था और कांग्रेस और जेडीएस ने मिलकर सरकार बना ली.
शाह ने पिछले साल इस बात की भी पूरी कोशिश की कि सोनिया गांधी के विश्वस्त अहमद पटेल गुजरात से राज्यसभा सीट न जीत पाएं क्योंकि पटेल भी आर्थिक तौर पर इसका तोड़ निकाल पाने में सक्षम थे.
शाह हिंदू-मुस्लिम मुद्दों को इस तरह उठाने में माहिर है कि जातिगत मतभेद को ख़त्म कर विरोधियों के ख़िलाफ़ एकता बनाई जा सके. 2014 चुनावों के दौरान भी एक विशेष चुनावी ट्रैकर का इस्तेमाल किया गया जिससे उत्तर प्रदेश की हर सीट का आकलन वहां के 'भावनात्मक मुद्दों' के मुताबिक़ किया गया था. स वक्त उत्तर प्रदेश के प्रभारी अमित शाह ही थे. उत्तर प्रदेश में बीजेपी के पक्ष में आए अविश्वसनीय परिणाम ने बता दिया कि नरेंद्र मोदी की सफलता की कुंजी अमित शाह हैं.
अर्थव्यवस्था की हालत और मोदी सरकार के अधूरे वादों के मद्देनज़र अमित शाह की ऊर्जा अब विपक्ष को विभाजित रखने में जाएगी. आने वाले साल 2019 में शाह की क्षमताओं की असल परीक्षा होगी कि वे 'मोदी प्रयोग' को अगले स्तर तक पहुंचा पाते हैं या नहीं.
छोटी पार्टियों को ऐसे धमकाना और प्रबंधित करना कि विपक्षी एकता का सूचकांक वैसा ही रहे जैसा 2014 में था और जिसने भाजपा को 31 प्रतिशत वोट के साथ बहुमत दिया.

Saturday, September 1, 2018

光伏业全面复苏?

因为生产过剩,以及欧盟、美国反倾销政策的双重影响,2012年光伏业爆发严重危机,导致国内光伏企业头羊尚德公司在内的大量中国光伏企业遭受重创。近一年后,光伏行业又开始回暖。

 “光伏是绿色能源,(虽然经历低谷),但是代表着未来的发展方向。目前光伏整个国际市场是在回暖的。”国家能源局新能源和可再生能源司(简称新能源司)副司长梁志鹏在12月3日的“中国可再生能源海外投资论坛”上对记者说。

在欧盟制订《环境和能源资助纲要》的能源新战略,拟将可再生能源发展列入欧盟能源新纲要的同时,中国也在行动,推动包括光伏、风能、生物质能在内的可再生能源产业的海外业务拓展。光伏是主打。

中国民生银行、中国工商银行、中国农业银行等,都继国家开发银行之后,开始支持可再生能源的走出去战略。中国民生银行贸易金融部包育栋对中外对话说,民生银行针对光伏的投资项目没有总额限制,单个项目也没有额度上限。

国家能源局新能源司邢翼腾对中外对话说,光伏行业的复苏,有多方面原因共同作用的结果。企业产业链完善、抗风险能力增强是其一,欧盟、美国、日本等需求加大的国际环境是其二,而国家能源局的24号文是也是一个重要的信号。

中央政府今年7月出台《国务院关于促进光伏产业健康发展的若干意见(2013)24号)》,简称24号文件。邢翼腾说:“按国家发展规划,到2015年中国光伏的总装机容量将提升到2100万千瓦,24号文中,已经把装机容量提高到3500万千瓦,这是一个大幅的增长。”

拜尔能源王志军也说,光伏电站不论是项目开发、工程建设还是后期持有运营,回报都很高,很多大的国际公司都乐于作此投资。

即便如此,也有人持谨慎态度。浙江正泰太阳能公司副总裁陆川对市场复苏说法还保持谨慎,他认为目前可以说政策回暖,市场复苏还不能下结论。

此外,国家能源局新能源司梁志鹏说,当前中国光伏走出去还面临四个主要困难:缺少政府配合——企业各自为政甚至恶意竞争;融资困难;国际话语权不足;投资风险大。

梁志鹏说,考虑企业对其他国家法律、政策、标准不熟悉,靠自身去摸索很耗时间,国家能源局新能源司也为此建立了专门的服务机制,并建立海外法规、政策信息共享交流平台。
中国正在修订1989年正式颁行的《环境保护法》。这部法律的二审稿,曾将中华环保联合会规定为唯一具有公益诉讼主体资格的机构,民间组织和一些法律人士认为这一规定不利于发挥公益诉讼在环境保护中的积极作用。10月底,这部法律最新的修改稿提交第三次审议。有关诉讼主体资格的规定做出了修改,但仍被环保组织和一些法律人士认为:与二审稿相比,这一修改只是“换汤不换药”。

门槛依然高
“到底什么样的原告,可以提起环境公益诉讼,现行法律规定得不清楚”,“至今这一规定也没有相关司法解释”,北京律师胡少波称,正是凭借这一点,北京东城区法院日前对北京首例公益诉讼——环保组织诉神华集团在内蒙污染的起诉,做出了暂不予立案的决定。

10月底,当《环保法》三审草案公布后,自然之友总干事张伯驹依然感到相当失望。

在《环保法》三审草案中,关于公益诉讼主体资格这一块,变成了“对污染环境、破坏生态、损害社会公共利益的行为,依法在国务院民政部门登记、专门从事环境保护公益活动连续五年以上且信誉良好的全国性社会组织,可以向人民法院提起诉讼”。

“这样的限定,除了中华环保联合会这样的环保部主管机构,又有谁能符合条件?”

自然之友将国内比较活跃的25家环保组织,按照《环保法》三审稿中所限定的公益诉讼资格规定逐条对比,结果发现:除“信誉良好”这条在无评判标准、无判断机制的情形下无法做出评定外,能同时符合“国务院民政部登记”、“连续5年以上从事环保公益活动”这两条的,只剩下中华环保联合会一家了。

“民间环保组织登记难,一直是个老大难问题,因为按相关规定,国内环保组织必须要有业务主管部门和民政部门‘双登记’才可以注册,现在这一点反倒成了门槛”,“这一刚性规定,堵死了绝大部分环保组织的公益诉讼主体资格”,张伯驹称,如果三审稿这样通过,此前一直在云南曲靖进行公益诉讼的自然之友,就变得不具备公益诉讼资格了,“明显是让公益诉讼实践倒退”。

中国政法大学法学教授曹明德认为,严格按照《环保法》三审稿对公益诉讼主体限定条件来衡量的话,那么全国只有中国环境科学协会、中华环保联合会、中国环保产业协会、中国生态文明促进会等少数几家“国”字头民间组织符合条件,且符合条件者中又有提起公益诉讼意愿的,就更寥寥无几了。

于1989年正式颁行的《环境保护法》,在此次修订之前,已经施行20多年。该法二审稿中,出现了公益诉讼的相关条款,规定由“中华环保联合会以及在省、自治区、直辖市设立的环保联合会可以向人民法院提起诉讼”。

自然之友、自然大学等环保组织随后向社会发出紧急呼吁,反对由一家环保组织垄断环境公益诉讼权:“由中华环保联合会一家来提起环境公益诉讼的立法建议,理论上无依据、立法上不科学、实践中难操作、社会影响上有倒退,我们强烈表示反对”。

这些呼声发出之后,三审稿出现了上述修改。

“眼下对公益诉讼主体资格的限定,门槛依然太高”,中国政法大学民诉法教授肖建华称:“应该让所有合法的社会组织,都有权发起环境公益诉讼”,“立法方向上应该放开,而不是限定”。

立法漏洞

目前,曹明德教授正接受最高法院委托,协助司法机关对《环保法》三审稿中的公益诉讼主体“有关组织”做司法解释。他认为这个适格主体,应该具备四个条件:一是依法登记成立的;二要有自己的办公机构和场所;三是规章中有环境保护的宗旨要义;四是要有一定数量的专业律师。

肖建华教授则认为,环境公益诉讼主体应该对一切合法登记的社会团体或组织放开,在具体起诉内容上,《侵权责任法》第15条规定的“停止侵害、排除妨碍、消除危险、恢复原状、消除影响恢复名誉”等8种方式中,除“返还财产”和“赔偿损失”两条不宜由社会团体发起公益诉讼来提出讼诉请求外,其它都可以由社会组织提起公益诉讼。

“只有放宽对社会组织发起公益诉讼资格的限定,才可能解决目前公益诉讼主体缺位之立法短板,走出个人发起公益诉讼不具备资格、检察机关有资格无发起意愿的困局”,很多学者也都认为“放开社会组织参与公益诉讼,不会带来滥诉”,反而会在环境问题日益严峻的中国,真正鼓励社会参与,用公益诉讼方式来补充解决行政监督不力所带来的系列环境问题。

在中国,环境公益诉讼还是近十年出现的新事物。2003年左右,中国的贵阳、昆明、无锡等地法院,先后成立环境法庭,在环境公益诉讼方面进行了尝试。但在立法层面,国内关于环境公益诉讼的立法一直尚无明确的法律规定。

在中国法律框架中,目前除《海洋环境保护法》明确规定对发生在海洋范围的重大环境污染事件,可以由海洋监管部门代表国家提起赔偿要求(包括海洋公益诉讼)外,只有2012年8月修订后的新《民事诉讼法》,对环境公益诉讼有相关规定。
“这样,事实上,无论《海洋环境保护法》、还是新修《民诉法》、以及正在修订中的《环保法》,眼下都未能完全解决公益诉讼主体问题,因此客观上形成了立法漏洞。”王灿发教授对中外对话表示。