दो घंटे की देरी से तेजस्वी यादव का हेलिकॉप्टर जब मंडराने लगा और अचानक से पंडाल की भीड़ बढ़ गई. ज्यादा से ज्यादा लोग तेजस्वी के क़रीब पहुंचने की कोशिश करते हैं और ना पहुंचने पर मोबाइल से फोटो बनाने की कोशिशें.
तेजस्वी
यादव ने मंच पर आते ही, सबसे पहले लोगों को देरी की वजह बताई. उन्होंने
कहा कि उन्हें पटना से ही उड़ान भरने की अनुमति नहीं मिल रही थी. उन्होंने
फिर से दोहराया कि उनके पिता को किस तरह से फंसाकर जेल में रखा जा रहा है. उन्होंने लोगों से ये भी कहा कि ये ग़रीबों के एकजुट होने की लड़ाई है.
तेजस्वी
बहुत नहीं बोले और अंत में लोगों से रघुवंश बाबू को जिताने की अपील करते हुए कहा कि पहले से लेट हो चुका हूं और आगे कई सभाएं करनी हैं.
इस
सभा में शामिल होने वाले ज्यादातर लोग आरजेडी के समर्थक नज़र आए. एक युवा
ने कहा, ''मोदी जी अब विकास की बात नहीं कर रहे हैं, विनाश की बात कर रहे
हैं.''
रैली में आई एक महिला ने कहा, ''नरेंद्र मोदी जी ने हमरा सब के आग लगा के मुआ देलकिन. कौनो काम नहीं हो रहल. वोट देबए ताकि लालू जी को जेल से
निकाले जेतिन ताकि हमरा सब के ज़िंदा रखतिन.''
वैशाली की छह में से तीन विधानसभा सीटों पर आरजेडी के विधायक हैं और तीनों के तीनों यादव हैं.
रघुवंश
प्रसाद सिंह को भरोसा है कि 12 मई को चुनाव के दिन महागठबंधन के पक्ष में
ये सब लोग मतदान करेंगे. वे कहते हैं, ''मोदी सरकार ने लोगों को क्या दिया है, केवल झूठ बोलने और थेथरई करने से लोग बार बार नहीं ठगाएंगे.''
रघुवंश
बाबू ये भी दावा करते हैं कि देश भर में नरेंद्र मोदी और बीजेपी के
ख़िलाफ़ विपक्ष का गठबंधन बन जाएगा, उसमें कोई मुश्किल नहीं होगी.
वहीं
दूसरी ओर वीणा देवी को भी भरोसा है कि बीजेपी के सवर्ण समर्थकों के साथ-साथ राम विलास पासवान की पार्टी के अपने वोट बैंक के चलते वह आसानी से
चुनाव जीत जाएंगी.
वैसे परंपरागत तौर पर दो ऐसी बातें भी वैशाली से जुड़ी हैं जो रघुवंश प्रसाद सिंह को परेशानी में डालने वाली हैं. एक तो वैशाली महिलाओं के लिए पसंदीदा चुनाव मैदान रहा है. यहां से चार बार महिलाएं लोकसभा में पहुंचने
में कामयाब रही हैं.
इन चार में तीन बार तो महिलाओं के बीच ही
आमने-सामने की टक्कर थी. 1980 और 1984 का चुनाव किशोरी सिन्हा ने जीता था,
जबकि 1989 में जनता दल की उषा सिन्हा और 1994 में बीजेपी के टिकट पर लवली
आनंद ने चुनाव जीता था.
इसके अलावा एक और बात है, यहां एक बार चुनाव हारने वाले दिग्गज नेताओं का सियासी करियर संकट में आ जाता है. उनके लिए
सक्रिय राजनीति में फिर से जगह बना पाना मुश्किल होता आया है. तारकेश्वरी
सिन्हा, ऊषा सिन्हा, किशोरी सिन्हा, नवल किशोर सिंह और वृषण पटेल जैसे नेता हार के बाद वापसी नहीं कर पाए.
ऐसे में 2014 का चुनाव हार चुके रघुवंश बाबू के सामने इस इतिहास को बदलने का दारोमदार भी होगा.
रघवुंश
प्रसाद सिंह के पक्ष में एक अच्छी बात ये है कि पांच बार सांसद रहने और वैशाली के लिए बहुत कुछ नहीं कर पाने के बावजूद उनकी छवि बेदाग़ बनी हुई है और लोग उन्हें सम्मान से देखते हैं.
वहीं दूसरी ओर बीजेपी की
विधायक रहीं वीणा देवी जेडीयू के एमएलसी दिनेश चंद्र सिंह की पत्नी हैं.
उनका नामांकन रद्द कराने के लिए रघुवंश प्रसाद सिंह पिछले दिनों
ज़िलाधिकारी दफ्तर के सामने धरने पर भी बैठ गए थे. वीणा देवी पर आपराधिक
जानकारी छुपाने का आरोप था.
वीणा देवी इस मुद्दे पर कहती हैं, ''ऐसा रघुवंश प्रसाद हार के डर से कर रहे थे और मैं तो 1991 से सक्रिय राजनीति
में हूं, इतने लंबे समय तक तो किसी ने ऐसे आरोप मुझ पर नहीं लगाए थे.''
वैसे वीणा सिंह के पति दिनेश चंद्र सिंह पर भी कई आरोप लगते रहे हैं. दिनेश चंद्र सिंह एक दौर में रघुवंश बाबू के चुनाव प्रबंधन का काम भी देखा करते थे. लिहाज़ा उन्हें ये तो पता होगा कि सेंधमारी कैसे की जा सकती हैं.
तो साफ़ है कि वैशाली के चुनाव में वो सब समीकरण गड्मड् हो जाते हैं, जो
बिहार की बाक़ी सीटों का रुझान बताने के लिए कहे-सुने जा रहे हैं. इसे आप
चाहें तो विश्व के पहले लोकतंत्र की ख़ूबसूरती मान लें चाहें तो बिहार की
पॉलिटिक्स का वो कॉकटेल, जिससे राजनीतिक पंडितों का दिमाग़ चकरा सकता है.
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